बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव | 2023

बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव | 2023

बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव और वजह ऑनलाइ क्लासेज के कारण बच्चों में बढ़ गया है गैजेट्स का इस्तेमाल हो रहा हैं जिससे बच्चे मानसिक समस्याओं के शिकार हो रहे हैं

बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव

आपका यह विचार सही है कि ऑनलाइन क्लासेज के कारण बच्चों के गैजेट्स का इस्तेमाल बढ़ गया है और इसके कुछ मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है। इस प्रक्रिया में, मौजूदा पीढ़ी अधिकांशतः स्मार्टफोन, टैबलेट, और कंप्यूटर का उपयोग करके अधिक समय बिता रही है। यह बच्चों को नकारात्मक प्रभावों के साथ यौगिक और मानसिक समस्याओं की ओर खींच सकता है। कुछ सामान्य मानसिक समस्याएं शामिल हो सकती हैं,

  • जैसे चिंता, तनाव, सोशल मीडिया की तुलना में स्वीकृति खोना, दुख, आत्मविश्वास की कमी, और सोने की असमर्थता।
  • विशेष रूप से लंबे समय तक स्क्रीन पर देखने से आँखों में तनाव और प्रदर्शन कमी भी हो सकती है।
  • यदि आप अपने बच्चों को इस प्रकार की समस्याओं से बचाना चाहते हैं, तो निम्नलिखित कुछ उपायों को अपना सकते हैं।
बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव
बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव

सीमित स्क्रीन समय

  • बच्चो के लिए एक टाइम फिक्स करे और उन्हें उसी टाइम वो गैजेट्स उनके हाथ मे दे मगर अपनी नज़रो के सामने ताकि वो उसका गलत इस्तेमाल न कर सके।
  • टाइम पूरा होने पे उन्हें दूसरी एक्टिविटी मे बिजी रखे ।
  • उनको आप खुद टाइम दे उनसे बात करे और उनसे बात करते समय आप खुद अपने मोबाइल का इस्तेमाल न करे ।
  • बच्चो पे धयान दे ताकि उनका कोई और फ़ायदा न उठा सके ।
  • स्कूली कार्यक्रमों के अलावा, उन्हें बाहर जाने, व्यायाम करने, साथ में खेलने, और अन्य काम करने के लिए प्रेरित करें।

गैजेट्स की समय-सीमा तय करे

  • बच्चों के लिए उपयुक्त गैजेट्स और ऐप्स का चयन करें और उन्हें समय-समय पर संशोधित करें।
  • विभिन्न स्क्रीन टाइम-आउट ऐप्स और फ़िल्टर उपलब्ध हैं जो स्क्रीन का समय और पहुंच को नियंत्रित कर सकते हैं।

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संरचनित और सक्रियतापूर्ण समय

बच्चों को अधिक गतिविधियों में शामिल करें जो उन्हें गैजेट्स के अलावा और सामान्य दिनचर्या से अलग रखेगी। एकजुट खेल, कला, साहित्य, और अन्य शौकों का पूरा होना मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूत और विकसित रखने में मदद कर सकता है।

सतर्कता की जरूरत

बच्चों के साथ नियमित रूप से चर्चा करें और उन्हें उनके इंटरनेट और गैजेट उपयोग के बारे में सतर्क करें। उन्हें आपत्तिजनक सामग्री से बचने और इंटरनेट पर सुरक्षित रहने के लिए जागरूक बनाएं।

सही उदाहरण पेश करें

  • आप खुद भी सक्रिय रहें और अधिक स्क्रीन समय से बचें।
  • अपने बच्चों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण स्थापित करना उनके लिए सही मार्गदर्शन होगा।
  • यदि आपके बच्चे किसी गंभीर मानसिक समस्या से प्रभावित हो रहे हैं, तो आपको किसी पेशेवर स्वास्थ्य देखभाल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
  • वे आपके बच्चे की स्थिति का जांच करेंगे और उचित सलाह देंगे।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO)

  • वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक स्वास्थ्य विकार घोषित किया था। डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार, ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ गेमिंग को लेकर बिगड़ा नियंत्रण है,
  • जिसका अन्य दैनिक गतिविधियों पर भी प्रभाव पड़ता है। डब्ल्यूएचओ ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के ताजा अपडेट में यह भी कहा कि गेमिंग कोकीन और जुए जैसे पदार्थों की लत जैसी हो सकती है।

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बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव
बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव

बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव से होनेवाले नुकसान

बच्चों को होने वाली समस्याएं :

A. समस्या: ऑटिज़म
ऑटिज़म में बच्चे की कम्युनिकेशन स्किल्स और लैंग्वेज दोनों ही उसकी उम्र के अनुसार विकसित नहीं हो पाती हैं।

B. समस्या: मेंटल रिटार्डेशन
उम्र के हिसाब से कोई भी काम ना सीख पाना। बैठना, क्रोलिंग, चलना, हर काम देरी से सीखना या पूरी तरह ना सीख पाना।

C. समस्या: लर्निंग डिसऑर्डर
लर्निंग डिसऑर्डर में बच्चे को किसी खास विषय को समझने, पढ़ने या लिखने में समस्या हो सकती है।

D. समस्या: फूड हैबिट्स
बच्चा भोजन करने में नखरे करता है। उम्र के हिसाब से कम खाता है।

E. समस्या: न्यूट्रिशन संबंधी समस्या
बच्चे की उम्र के हिसाब से उसके शरीर और ब्रेन का विकास ना होना।

शुरुवाती साल की उम्र से जुड़ी समस्याएं

A. समस्या: बेड वेटिंग
बच्चा रात को सोते समय बिस्तर पर ही पेशाब कर देता है।

B. समस्या: एडीएचडी (ADHD)
बच्चा बहुत अधिक शरारती होता है, एक जगह पर टिककर नहीं बैठ पाता, किसी भी एक काम को पूरा नहीं कर पाता, पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाता, दूसरे बच्चों को पढ़ने नहीं देता। बुलिइंग करता है।

C. समस्या: लर्निंग डिसएबिलिटी
बच्चे को मैथ्स पढ़ने में समस्या होती है, बच्चा शब्दों को उल्टा पढ़ता है, कई महीनों की प्रैक्टिस के बाद भी बच्चा एक लाइन पर नहीं लिख पाता, बच्चे को सिक्वेंस में चीजें याद रखने में समस्या होती है। यह समस्या छोटे बच्चों में भी होती है लेकिन उस समय पहचानकर यदि क्योर ना किया जाए तो यह बड़े होने पर भी बनी रहती है और प्री-स्कूल के बाद स्कूल के स्तर पर बच्चे को समस्या होने लगती है

D. समस्या: डिप्रेशन की शुरुआत
बच्चा गुमसुम रहता है, चिढ़चिढ़ा हो गया है, खाना कम खाता है, दोस्तों से मिलने नहीं जाता, स्कूल में भी गेम्स जैसी ऐक्टिविटीज में इनवॉल्व नहीं होता है। पढ़ाई में परफॉर्मेंस गिरने लगती है, इत्यादि।

13 से 17 साल की उम्र से जुड़ी समस्याएं

A. समस्या: कंडक्ट डिसऑर्डर: एग्रेसिव बिहेवियर, सेल्फ हार्मिंग बिहेवियर, सुसाइडल बिहेवियर, पर्सेप्शन ऑफ अकैडमिक स्ट्रैस के कारण व्यवहार में नकारात्मक बदलाव आना।

B. समस्या: एडिक्शन, जैस- केमिकल एडिक्शन, इंटरनेट एडिक्शन
बच्चा परिवार से कटने लगता है, घर में ज्यादा बातचीत नहीं करता और कमरा बंद करके अकेला रहना पसंद करता है। चिढ़चिढ़ा हो गया है। गुस्सा बहुत करने लगा है, स्कूल से शिकायतें आने लगी हैं, पढ़ाई पर ध्यान नहीं लगा पा रहा।

C. समस्या: बिहेवियरल डिसऑर्डर्स:
बच्चा अचानक से गुमसुम रहने लगता है, अकेले में अधिक समय बिताता है, खेलने जाना और दोस्तों से मिलना बंद कर दिया है या बहुत कम कर दिया है, बातों को अनसुना करने लगा है,

कुछ पूछने पर रिप्लाई नहीं करता यदि करता है तो गुस्से में या बहुत बेमन से जवाब देता है। बाथरूम के अधिक चक्कर लगाने लगा है।

D. समस्या: इमेज डिसऑर्डर:
खाना बहुत कम खाना, खाना खाते ही उल्टियां करना। भूख से अधिक भोजन करना और फिर उल्टियां करके उसे निकाल देना।

हर समय अपने लुक्स को लेकर चिंतित रहना। लोगों से घुलने-मिलने से बचना, घर से बाहर कम निकलना।

जानिए क्या है बचने का रास्ता

  • किशोरों को ऑनलाइन क्लास के बाद गैजेट का इस्तेमाल न करने दें।
  • रात में नौ बजे के बाद सोने के लिए कहें। नोटिफिकेशन अलर्ट हटा दें।
  • यदि वे बार-बार उठते हैं और मोबाइल चेक करते हैं उन्हें सलीके से समझाएं।
  • किशोरों को फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया का प्रयोग कम से कम करने दें।
  • किशोरों ने अपना व्हॉट्सएप ग्रुप बना रखा है तो उसका उपयोग सिर्फ पढ़ाई के लिए करें।

https://youtu.be/vPWUliiPw8c

शुरुआत में कैसे करें हैंडल

1. गलत तरीका :

  • बच्चों को डांटना या पीटना
  • अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करना
  • बच्चों को शारीरिक या मानसिक सजा देना
  • बच्चों को डराना
  • बच्चों को दूसरों के सामने भला-बुरा कहना

2. सही तरीका :

  • बच्चे से पूछें कि वो ऐसा क्यों कर रहा है
  • उसे समझाएं कि ऐसा करना अच्छा नहीं होता
  • बताएं कि उसे चोट लग सकती है और फिर वह दोस्तों से नहीं मिल पाएगा
  • एनर्जी का सही उपयोग करने की तरीका बताएं, जैसे, फुटबॉल या बैडमिंटन खेलने के लिए प्रेरित करें
  • बच्चे से उसके फ्यूचर और करियर को लेकर सकारात्मक ढंग से बात करें
बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव
बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव

एक तेज बच्चा और हाइपर ऐक्टिव में फर्क को जरूर समझें

  • ज्यादातर पैरंट्स हाइपर ऐक्टिव बच्चे और ADHD से पीड़ित बच्चे के बीच फर्क नहीं समझ पाते क्योंकि दोनों ही केस में बच्चा एक जगह पर टिककर नहीं बैठ पाता। ऐसे में कैसे पता करें कि समस्या क्या है?
  • दोनों में फर्क यह है कि हाइपर ऐक्टिव बच्चे आमतौर पर अपना होमवर्क जल्दी पूरा कर लेते हैं। इन्हें जो भी कोई काम दिया जाता है,
  • उसे ये फटाफट पूरा कर लेते हैं। ADHD वाले बच्चों में एकाग्रता की बहुत ज्यादा कमी होती है। इसलिए ये अपना होमवर्क पूरा नहीं कर पाते।
  • किसी भी काम को बीच में ही छोड़ देते हैं और दूसरे काम में लग जाते हैं और यही सिलसिला चलता रहता है।
  • हाइपर ऐक्टिव बच्चे जो गेम खेल रहे होते हैं, उसे पूरी तरह एंजॉय करते हुए मन लगाकर खेलते हैं। ADHD वाले बच्चे किसी खेल को भी ज्यादा देर तक नहीं खेल पाते।
  • यदि आप अपने बच्चे की एनर्जी को सही तरीके से चैनलाइज नहीं कर पा रहे हैं या यह नहीं समझ पा रहे कि चाइल्ड हाइपर ऐक्टिव है या ADHD से पीड़ित है तो मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट या चाइल्ड सायकायट्रिस्ट की मदद लें।
बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव
बच्चों पर गैजेट्स का प्रभाव

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